शनिवार, 31 अगस्त 2013

तुम्हारी नाक का तिल

तुम्हारी नाक का तिल
रोक लेता है मेरी धड़कन

ध्रुव तारे सा एक ही जगह
टिका हुआ

ढूढने वालों को
रास्ता दिखा रहा हो जैसे

जब देखा था पहली बार
तब से लेकर

हर बार पहली नज़र
वहीँ जाती है,

उसे देखता हूँ तो लगता
है कि तुम हो,

आकाश में खोई  हुई
ढूंढती हुई जाने क्या ?

1 टिप्पणी:

Madan Mohan Saxena ने कहा…


सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/