मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

ज़िंदगी

ज़िंदगी वहाँ नहीं है
जहाँ अँधेरे कोनों में बैठे
ढूंढ रहे हैं आप

ज़िंदगी तो खुले आसमान के नीचे
गुनगुनी धूप में है,

ज़िंदगी मेज़ पर बैठकर ली गयी
चाय की चुस्कियों में है,

ज़िंदगी उदास चेहरों से दूर
कहीं से आती मीठी हँसी में है,

सो ज़िंदगी को वहाँ क्योँ ढूँढे
जो उसका पता ही नहीं,

क्यों ना आज से ढूढ़ने का लहज़ा
बदले ,

चलें उस ओर
जहाँ नहीं देखा पहले,

किसी की मुस्कराहट की वजह बन जाएँ।

और फिर अपने आप
लौट आएगी वो ज़िंदगी

जिसकी तलाश है ,

यही चाहते हैं न आप ?

फिर न कहियेगा  किसी
ने बताया नहीं।


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