शनिवार, 13 दिसंबर 2014

तुम बहुत याद आओगी

तुम्हारा लम्स 
रह जाएगा होंठों पर 

नहीं उतरेगा मेहँदी के 
रंग की तरह हथेलियों से 

और जो नज़्म तुम्हे 
पढ़ के सुनाई थी "मुलाक़ात" 

उस से उठा "दीवानगी का आलम"
बरसों बरसेगा 
दिल के घाट पर 

तुम्हारी हथेलियों की 
तरह सर्द होंगी जब मेरी रातें 

तुम बहुत  याद आओगी 

धड़कनें जब तेज़ होंगी 
साँसों में तूफ़ान होगा 
और हम चाँद पे एक कश्ती 
में तैरने  के ख्वाब देखेंगे 

तुम बहुत याद आओगी 

जब भी मेरे पाँव 
किसी के पाँव से टकराएंगे 
कोई जब कंधे पे चिकोटी 
काट के जगायेगा 

तुम बहुत याद आओगी 

जब भी कोई क्लिफ 
कहीं बिस्तर पे गिरा नज़र आएगा 
कान पे उँगलियाँ 
जब फेर कोई जाएगा 
मेरे गालों को कोई हौले 
से सहलाएगा 

तुम बहुत याद आओगी 

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