तुम्हारा लम्स
रह जाएगा होंठों पर
नहीं उतरेगा मेहँदी के
रंग की तरह हथेलियों से
और जो नज़्म तुम्हे
पढ़ के सुनाई थी "मुलाक़ात"
उस से उठा "दीवानगी का आलम"
बरसों बरसेगा
दिल के घाट पर
तुम्हारी हथेलियों की
तरह सर्द होंगी जब मेरी रातें
तुम बहुत याद आओगी
धड़कनें जब तेज़ होंगी
साँसों में तूफ़ान होगा
और हम चाँद पे एक कश्ती
में तैरने के ख्वाब देखेंगे
तुम बहुत याद आओगी
जब भी मेरे पाँव
किसी के पाँव से टकराएंगे
कोई जब कंधे पे चिकोटी
काट के जगायेगा
तुम बहुत याद आओगी
जब भी कोई क्लिफ
कहीं बिस्तर पे गिरा नज़र आएगा
कान पे उँगलियाँ
जब फेर कोई जाएगा
मेरे गालों को कोई हौले
से सहलाएगा
तुम बहुत याद आओगी
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