एक आग सी लगी है चमन में
लोग आपके फैसले भीड़ के
ज़रिये लेते हैं,
भीड़ जिसका कोई चेहरा नहीं होता,
पर भीड़ का आतंक होता है,
कायर लोग जो अकेले कुछ नहीं कर पाते
भीड़ के साथ हो जाते हैं,
अपनी कुंठा निकालते हैं
एक निरीह आदमी पर,
पहले उसपर कुछ झूठे
आरोप लगाये जाते हैं ,
ऐसे आरोप जिनसे भीड़ का खून
खौल उठे,
वही भीड़ जिसका खून समाज की अनेक
बुराइयों को देखकर ठंडा पद जाता है,
किसी ऐसी बात के लिए खौल उठता है
जो बात किसी भी सभ्य इंसान के लिए
एक छोटी बात हो सकती है,
भीड़ के अंदर भयानक गुस्सा भरा पड़ा है,
कहाँ से आया ये गुस्सा?
क्या बरसों से उन्हें ये सिखाया पढ़ाया जा रहा है?
कोई भीड़ को शांत रहना क्यों नहीं सिखाता?
कुछ लोग सिखाते तो हैं,
पर उनको मार दिया जाता है।
इसलिए क्योंकि वो शान्ति की बात करते हैं।
शान्ति की बात करना अपराध है,
इसलिए गुस्से की बात कीजिये
ऐसी बात कीजिये जिससे खून में उबाल आये।
भीड़ को ये पसंद आता है,
अगर आपको नहीं पसंद और आप भीड़ के साथ
नहीं हैं तो आप भी मार दिए जाएंगे,
लेकिन तभी अगर आप बोलें,
अगर आप चुप रहें तो सब ठीक है,
बिलकुल इस देश की तरह,
जहाँ सब ठीक है,
अमन चैन और भाई चारा है,
लेकिन फिर ये भीड़ इकठ्ठा कैसे हो जाती है ?
कौन बुलाता है ऐसे लोगों को एक साथ ?
आजकल नए साधन आ गए हैं
सोशल मीडिया
वाट्सएप्प
इसके माध्यम से घृणा फैलाई जाती है,
लोग इन साधनों का उपयोग गुस्सा निकलने के लिए
करते हैं,
यदि इनका गुस्सा न निकले
तो ये आग में घी डालने का भी काम करते हैं।
लेकिन ये सब पैदा कहाँ होता है ?
ये सब पैदा होता है पाठशाला में
पाठशाला में सिद्धांत पढ़ाये जाते हैं,
उस से शिक्षित लोग घृणा की सामग्री तैयार
करते हैं,
और फिर ये सामग्री भीड़ में बाँट दी जाती है।
क्या भीड़ का अपना कोई दिमाग नहीं होता ?
नहीं भीड़ का अपना कोई दिमाग नहीं होता
भीेड़ के मास्टरमाइंडस होते हैं,
क्योंकि भीड़ भेड़ों की तरह होती है ,
वो बस सीधी राह में चलती जाती है।
तो इन मास्टर माइंडस को सरकार रोकती क्यों नहीं ?
मास्टर माइंडस हमेशा शासन में होते हैं,
सरकार उनकी होती है ,
मशीनरी उनकी होती है ,
वही लोग मलाई खाते हैं
उनके लिए सत्य असत्य कुछ नहीं होता
धर्म अधर्म कुछ नहीं होता
भीड़ के लोग ही अपने में से किसी एक
को मार देते हैं
मरती भी भीड़ ही है
मारती भी भीड़ ही है
नुक्सान भी भीड़ का ही होता है
फायदा किसका होता है फिर ?
उनका जो भीड़ के साथ है
और भेड़ों को चराते हैं।
फिर किसी भेड़ को ज़बह कर के
उसका मांस रोटी के साथ खाते हैं।
किस भेड़ को ज़बह करना है इसका
चुनाव कैसे होता है ?
नॉर्मली वो भेड़ जो सवाल करती है उसका नंबर
पहले आता है
कभी कभी प्रोबेबिलिटी के हिसाब से होता है
कभी रंग के आधार पर
कभी इस आधार पर की उसके घर पर कौन सा झंडा है
कभी इस आधार पर की उसको प्रेम किस से है
कभी इस आधार पर की वो पैदा किस घर में हुआ है
कभी इस आधार पर की वो क्या खा रहा है
और जब कोई वजह नहीं होती तो वजह पैदा कर दी जाती है।
लोग आपके फैसले भीड़ के
ज़रिये लेते हैं,
भीड़ जिसका कोई चेहरा नहीं होता,
पर भीड़ का आतंक होता है,
कायर लोग जो अकेले कुछ नहीं कर पाते
भीड़ के साथ हो जाते हैं,
अपनी कुंठा निकालते हैं
एक निरीह आदमी पर,
पहले उसपर कुछ झूठे
आरोप लगाये जाते हैं ,
ऐसे आरोप जिनसे भीड़ का खून
खौल उठे,
वही भीड़ जिसका खून समाज की अनेक
बुराइयों को देखकर ठंडा पद जाता है,
किसी ऐसी बात के लिए खौल उठता है
जो बात किसी भी सभ्य इंसान के लिए
एक छोटी बात हो सकती है,
भीड़ के अंदर भयानक गुस्सा भरा पड़ा है,
कहाँ से आया ये गुस्सा?
क्या बरसों से उन्हें ये सिखाया पढ़ाया जा रहा है?
कोई भीड़ को शांत रहना क्यों नहीं सिखाता?
कुछ लोग सिखाते तो हैं,
पर उनको मार दिया जाता है।
इसलिए क्योंकि वो शान्ति की बात करते हैं।
शान्ति की बात करना अपराध है,
इसलिए गुस्से की बात कीजिये
ऐसी बात कीजिये जिससे खून में उबाल आये।
भीड़ को ये पसंद आता है,
अगर आपको नहीं पसंद और आप भीड़ के साथ
नहीं हैं तो आप भी मार दिए जाएंगे,
लेकिन तभी अगर आप बोलें,
अगर आप चुप रहें तो सब ठीक है,
बिलकुल इस देश की तरह,
जहाँ सब ठीक है,
अमन चैन और भाई चारा है,
लेकिन फिर ये भीड़ इकठ्ठा कैसे हो जाती है ?
कौन बुलाता है ऐसे लोगों को एक साथ ?
आजकल नए साधन आ गए हैं
सोशल मीडिया
वाट्सएप्प
इसके माध्यम से घृणा फैलाई जाती है,
लोग इन साधनों का उपयोग गुस्सा निकलने के लिए
करते हैं,
यदि इनका गुस्सा न निकले
तो ये आग में घी डालने का भी काम करते हैं।
लेकिन ये सब पैदा कहाँ होता है ?
ये सब पैदा होता है पाठशाला में
पाठशाला में सिद्धांत पढ़ाये जाते हैं,
उस से शिक्षित लोग घृणा की सामग्री तैयार
करते हैं,
और फिर ये सामग्री भीड़ में बाँट दी जाती है।
क्या भीड़ का अपना कोई दिमाग नहीं होता ?
नहीं भीड़ का अपना कोई दिमाग नहीं होता
भीेड़ के मास्टरमाइंडस होते हैं,
क्योंकि भीड़ भेड़ों की तरह होती है ,
वो बस सीधी राह में चलती जाती है।
तो इन मास्टर माइंडस को सरकार रोकती क्यों नहीं ?
मास्टर माइंडस हमेशा शासन में होते हैं,
सरकार उनकी होती है ,
मशीनरी उनकी होती है ,
वही लोग मलाई खाते हैं
उनके लिए सत्य असत्य कुछ नहीं होता
धर्म अधर्म कुछ नहीं होता
भीड़ के लोग ही अपने में से किसी एक
को मार देते हैं
मरती भी भीड़ ही है
मारती भी भीड़ ही है
नुक्सान भी भीड़ का ही होता है
फायदा किसका होता है फिर ?
उनका जो भीड़ के साथ है
और भेड़ों को चराते हैं।
फिर किसी भेड़ को ज़बह कर के
उसका मांस रोटी के साथ खाते हैं।
किस भेड़ को ज़बह करना है इसका
चुनाव कैसे होता है ?
नॉर्मली वो भेड़ जो सवाल करती है उसका नंबर
पहले आता है
कभी कभी प्रोबेबिलिटी के हिसाब से होता है
कभी रंग के आधार पर
कभी इस आधार पर की उसके घर पर कौन सा झंडा है
कभी इस आधार पर की उसको प्रेम किस से है
कभी इस आधार पर की वो पैदा किस घर में हुआ है
कभी इस आधार पर की वो क्या खा रहा है
और जब कोई वजह नहीं होती तो वजह पैदा कर दी जाती है।
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