मंगलवार, 12 सितंबर 2017

मेरे रात दिन

मुझे चाह थी कि तु आये फिर,
रोये और मुझको रूलाये फिर,
मुझे ग़म है बस इसी चाह में,
क्यों गुज़र गये, मेरे रात दिन ।।

तुझे जाग जाग के था देखता,
मुझे होश कुछ अपना न था,
मैं पुकारता था चला गया,
हर मोड़ पर तुझे रात दिन ।।

मुझे शक नहीं है यकीन है,
ये दुनिया बहुत ही हसीन है,
मेरी ज़िन्दगी है मुझे ढूंढती,
हर मोड़ पर मुझे रात दिन ।।

_____ शाहिद अंसारी

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